नशा ए इश्क़ ये छोड़ा न जाए. गजल
ग़ज़ल
नशा ए इश्क अब छोड़ा न जाए ।
जमाने से मगर उलझा न जाए ।
बड़ी मासूम हैं उसकी अदाएं,
कि मुझसे और अब देखा न जाए ।
गरीबों की करो भरपूर सेवा ,
कहीं ये हाथ से मौक़ा न जाए ।
जुनूँ ए इश्क़ से डरने लगा दिल ,
कहीं ये उम्रभर बढ़ता न जाए ।
बड़ा खुदगर्ज़ निकला आदमी वो,
उसे हरहाल में समझा न जाए ।
हमेसा वक़्त की रफ्तार से चल ,
कभी भी वक़्त को रोका न जाए ।
हुआ दीदार जबसे यार रकमिश,
कि मुझसे रातभर सोया न जाए ।
-रकमिश सुल्तानपुरी
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