नशा- एक सामाजिक बुराई
नशा- एक सामाजिक बुराई
घूम रहा है युवा नशे में, पागलपन सा छाया है
मदहोशी में उसके लिए, अपना ना कोई पराया है ।
दर्द दिया है बेदर्दी नें, अपनों को खूब सताया है
सुई चुभा कर हृदय में, खून के आंसू रुलाया है ।।
शराब, तंबाकू, गुटखे ने उसके, मन पर काबु पाया है
दमन हुई है इच्छा शक्ति, गुलाम नशे ने बनाया है ।
सूझ-बूझ हुई मन से गायब, अपनों पर संकट आया है
बहक नशे की इस हालत में, कहर उसने बरसाया है ।।
अपने घर की इज्जत को, मिट्टी में उसने मिलाया है
घर परिवार की मर्यादा का, समाज में किया सफाया है ।
काबू होकर नशे में उसने, सपनों का महल ढहाया है
लेकर कर्ज नशे में उसने, गिरवी गहना रखवाया है ।।
शौक-शौक में सिगरेट का, छल्ला धुएं में उड़ाया है
मंडली में अपनी धाक जमा, हुक्का फिर से भरवाया है ।
देसी गानों की धुन पर उसने, ढक्कन बोतल खुलवाया है
नोटों की गढ्ढी हाथ में लेकर, हवा में नोट उड़ाया है ।।
ज़िद ना छोड़ी नशे में उसने, फेफड़ों को अपने गवाया है
मंडली, टोली काम आई ना, सांस पे संकट छाया है ।
मीठे जहर की इस बोतल ने, ट्रांसप्लांट किडनी को कराया है
होश में आया जब मानव तो, लीवर ही डैमेज पाया है ।।
अभी संभल जा ए मानव तू, शौक नहीं ये माया है
संयम रख जीवन में अपने, फिर ना कोई पराया है ।
छोड़ तंबाकू और शराब को, अरविंद ने समझाया है
नशा होता है एक बुराई, सबको पाठ पढ़ाया है ।।