जनाब, दोस्तों के भी पसंदों को समझो ! बेवजह लगातार एक ही विषय
रमेशराज की पिता विषयक मुक्तछंद कविताएँ
जीवन का एक ही संपूर्ण सत्य है,
भारतीय ग्रंथों में लिखा है- “गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुर
इंद्रियों की अभिलाषाओं का अंत और आत्मकेंद्रित का भाव ही इंसा
चलो इसे ही अपनी पार्टी से चुनाव लड़ाते है
*डॉ मनमोहन शुक्ल की आशीष गजल वर्ष 1984*
इंसान की बुद्धि पशु से भी बदत्तर है
मोबाइल पर बच्चों की निर्भरता:दोषी कौन
बाण माताजी के दोहे
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
ग़ज़ल _ मुहब्बत में मुहब्बत से ,मुहब्बत बात क्या करती,
प्यार टूटे तो टूटने दो ,बस हौंसला नहीं टूटना चाहिए
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
जितने लगाए तुमने हम पर इल्जामात ,