नव वर्ष अभिनंदन
कुहरे की रजत चादर ओढे
अलसाया सा आया मार्गशीर्ष,
ठिठुरन, कंपन और शीतलहर
संग समेटे लाया मार्गशीर्ष।
चुप्पी साधे और अकुलाते
दादुर, मयूर, पपीहा,
कोकिल की मधुरी वाणी भी
सुनती अब तो यदा कदा।
शाला जाते नन्हे मुन्नों ने डाले
स्वेटर, टोपी और दस्ताने,
अलाव तापती घर में बैठी
काकी क्या पढना जाने।
भोला काका साइकिल ले निकले
घर-घर पहुंचाने को दूध,
दूर तलक कुछ भले दिखे ना
मंजील तय करता है जरूर।
पगडंडी से गुजरे चरवाहे
तन पर ओढे झीने वसन,
धमाचौकड़ी करती लवकुश टोली
ना जाने माघ की सर्द चुभन।
पौष दे रहा दस्तक झुककर
माथे पर लगा रोली चंदन,
जड़ चेतन सब मिलकर करते
नव वर्ष अभिनंदन।
-विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’