नव-बसंत
” नव-बसंत ”
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गाती है धरा ,
फूलों से सजा !
सब हरा-भरा !
मन-भावन है ||
कितना प्यारा ,
कितना सुन्दर !
नव-सृष्टि सा
मौसम है !
हर्षित होता है
हर प्राणि !
आलम लगता
सावन-सा !!
नव – वल्लरी
नव – पल्लव
और
नव- पराग है
पावन-सा !!
मधुप करे…….
रसपान मधु का
इस कलि से…..
उस कलि !
कोयल कूक लगाती है
उपवन-उपवन
गली-गली !
चारों ओर
बहारें छाई !
फिर से है……..
नव-बसंत आई !!
(डॉ०प्रदीप कुमार “दीप”)