नव प्रस्तारित सवैया : भनज सवैया
भनज –सवैया
नगण जगण जगण, भगण जगण नगण गा
१११ १२१ १२१, २११ १२१ १११ २
निखर गया वह रूप, प्रेमिल हुलास छुवन से।
प्रखर हुई उर धूप, आकुल विलास चुभन से।।
विकल बसी उर पीर, वैभव उदास प्रबलता।
बहन लगा जब नीर, अंतस प्रवास सबलता।।
वरद वरेण्य प्रसार, आनन विहास विकलता।
अद्भुत दर्पण प्रहार, नेहिल अरूप सजलता।।
नत रहती हर डाल, पल्लवित गंध वहनता।
हुलस रहे सब लोग, अर्पित प्रसाद प्रवणता।।
सजग रहे दरबार, निर्धन दबाव सहनता।
धन बिन कौन अमोल, बादल सुजात दहलता।।
कब तक हो फरियाद, कानन विराट विरलता।
बिखर रूप सब जाय, धूसरित पाँव विचरता।।
सजल सुकाम ललाम, बिम्ब परिधान पहनते।।
सगुण सरूप विलास , प्रेम अविकार चहकता।
अमल अनंत दुलार, चाहत निकाम झलकता।।
हुलसित काम विलास, देह सब नाम महकता ll
सुशीला जोशी
9719260777