‘नव प्रभात’——–“उठो सूरज-उगो सूरज”
‘उठो सूरज-उगो सूरज”
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चलो उठो सूर्य
नव वर्ष आया
सब प्रतीक्षारत हैं
नव प्रभात पर
सर्द सुबह पर
गर्म कंबल का
मोह छोड़ो
और उगो
बहुत मुश्किल है न
लोगों को समझाना
कि मैं हूँ
मेरा भी अस्तित्व है
मुझ में भी बची है
थोड़ी गर्माहट
कुछ उजाला
कुहरा अभी भी छँटेगा
जब सूरज उगेगा
अब मैं कैसे देखूं ?
तुम भी कैसे देखो?
भैया रुको थोड़ी
देर लगेगी
मेरी ऊँचाई के आगे
इमारत दोपहर बाद झुकेगी
ऊँची इमारतों ने
कोशिश की
मुझे बौना करने की
पर अभी हूँ क्षितिजो
के बीच दौड़ लगाता
बेशक मैं छिपा सा हूँ
पर उगा हूँ।
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राजेश’ललित’शर्मा