नव दुल्हन
नव दुल्हन
छोटी सी जब पली बढ़ी
मां दादी सिखाए गुण हजार
बन बहू डोली में विदा हो
ससुराल घर का बनी शृंगार।
हाथों के चूड़े पायल की खनक
गूंजे हर पल अंदर बाहर
कुछ मुस्काई कुछ शर्माई
खिलती जैसे कली कचनार।
गुणों की गठरी सौम्या स्वभाव
आई है घर लक्ष्मी का अवतार
रहती सदा काम में व्यस्त
संभाल रखा है घर परिवार।
मेरे पति स्वभाव से ऐसे
जैसे भगवन है श्री राम
बुरी नजर से बचाना इनको
विनती सुनना मेरे भगवान।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हि० प्र०