नव्य द्वीप
नव्य द्वीप का रहने वाला
ले आया हूँ प्रेम की गागर,
चाह मेरी की अब समेट लू
तेरे प्यार की पूरी सागर।
भर भर के अतिरेक प्रेम
था सदा किया अर्पण हमने ,
दर्द दिलों का बढ़ता गया
जब नहीं समर्पण किया था तूने।
मै भी अनुरागित इतना की
तेरा मोह छोड़ नहि पाया
जितना विस्मृत करना चाहूँ
उतना और हमें है भाया।
फिर भी अनुप्राणित हूँ मै
सुन एक वृक्ष की बात सही
पवन गिराती नित्य पत्तियां
मित्रता है उनसे फिर भी वही
हैसियत देख रिश्तेदारों की
खातिरदारी लोग निभाते
काजू बादाम पैसे वालो को
बिस्कुट हम जैसो को खिलाते।
रीति सदा दुनिया की यही है
विवश नही है प्रेम आयु का
हर आयु की है ये जरूरत
सफर लंगोट से है ये कफ़न का।
अवसादित दिन भी गुजर रहे
कट रही स्याह राते भी वैसे
कट जायेगे बचे हुए दिन
कटते है औरों के जैसे।
धीरे धीरे उम्र कट रही
जीवन अतीत का हिस्सा है
अब यादों की पुस्तक बन
हो चुका एक अब किस्सा है।
अपने प्यार के भ्रम में ही
तुम जीने दो अब तो मुझको
समझ इसे निष्काम प्रेम
निर्मेश समर्पण कर दू तुमको।
निर्मेष