विधाता की परीक्षा
हयात में एक जलप्लावन
आँधी – तुफान गढ़ आता है ,
हमारे सर्व प्रमोदों को
कहीं दूरस्थ उड़ा ले जाता है।
इसका आना लिखित है
पर,इसमें हमें अँदाना होगा ,
म्लानि की गुरुत्व तले दबक
न कभी हयात जीना होगा।
वक्त – वक्त का खेल यह
कभी हँसाता कभी रूलाता ,
विधाता दुर्गम वक्त में ही
लेता हमारी विवेचना है।
इस विवेचना में गणना नहीं
युक्ति अवलोका जाता है ,
जिसका युक्ति उम्दा होता
वही उत्तीर्ण हो जाता है।
✍️✍️✍️उत्सव कुमार आर्या