नवोदय गीत
**** नवोदय-गीत ******
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बहुत ही थे वो दिन सुहाने,
नवोदय के वो दिन पुराने।
आरम्भ में हम थे अन्जाने,
अलग थे तब सबके घराने।
रहे बन परिवार मस्ताने।
नवोदय के वो दिन पुराने।
पग-पग पर होती थी मस्ती,
चेहरों पर मुस्काने खिलती।
गज़ब के थे वो दिन पुराने।
नवोदय के वो दिन पुराने।
शरारत की लगती झड़ियां,
मिलती थी वो सुंदर परियां।
गाए हमने नग़मे गाने।
नवोदय के वो दिन पुराने।
जाति-जाति से हम थे ऊँचे,
सम पद थे ना ऊपर- नीचे।
याद अभी सभी यार पुराने।
नवोदय के वो दिन पुराने।
शिक्षक थे माँ-बाप हमारे,
सदैव मार्गदर्शक सारे।
भगवन का हम दर्जा माने।
नवोदय के वो दिन पुराने।
एक – दूसरे के हम सहारे,
नदी के जैसे हों किनारे।
खुशियों भरे वो दिन पुराने।
नवोदय के वो दिन पुराने।
किसी पल थी होती लड़ाई,
उसी पल हो जाती मनाई।
भूलेंगे न हम वो ज़माने।
नवोदय के वो दिन पुराने।
हो जाती थी आंखमिचौली,
सपनों की रानी हमजोली।
दीवानगी – भरे – दीवाने।
नवोदय के वो दिन दीवाने।
संग सब थे खेलते – पढ़ते,
साथ ले सबको संग बढ़ते।
रह गए बस बन अफ़साने।
नवोदय के वो दिन पुराने।
अधूरी रही प्रेम कहानी,
जिन्दा है बीमारी पुरानी।
लगे नही वो तीर निशाने।
नवोदय के वो दिन पुराने।
मनसीरत हैं याद तराने,
सच्चे – झूठे सभी बहाने।
चलते थे एक साथ नहाने।
नवोदय के वो दिन पुराने।
बहुत ही थे वो दिन सुहाने।
नवोदय के वो दिन पुराने।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)