#नवांकुर#
ख्वाहिश की गीली मिट्टी में
एक बीज प्यार का रोपा था
भावों के अंकुर फूटे तब
जब अंदर से कुछ टूटा था
दो अंजुरी प्यार की बारिश से
नव प्राण जगे इस अंकुर में
कुछ धूप मिली थी अपनो की
और चाहत जीवित सपनों की
मैं आज तभी तो अंकुर से
एक पौधा बन उग आई हूं
पाषाण हृदय इस दुनिया में
कांटों से भी लड़ पाई हूं।