नववर्ष (व्यंग्य गीत )
नववर्ष (व्यंग्य गीत )
दिनकर जी क्या खूब लिखा
ये नया वर्ष स्वीकार नहीं है
पर देखो ये भारतीय जन
कहना कभी मानता नहीं है
चार हजार वर्ष पहले ही
जूलियस ने जो शुरू किया है
एक जनवरी से नववर्ष का
रोम देश ने जश्न किया है
हजारों हजार साल को भूल
अपने का अब ध्यान नहीं है
ये नया वर्ष स्वीकार नहीं है ।
जितना कहते दूना करते
शुभकामनाएँ सबको देते
जश्न में भी शामिल होकर
आतिशबाजी का आनंद लेते
अर्धरात का खाना पीना
कह देते यह चलन नहीं है
नये वर्ष का करते स्वागत
अपना पराया भाव नहीं है ।
ये नया वर्ष स्वीकार नहीं है ।
जिसके कंधे होती बागड़ोर
वही भविष्य बतलाते रोज
आने वाले नये साल पर
कैसा होगा ग्रहों का योग
नया साल एक जनवरी से
कैलेंडर बदलने कह देते है
भारतीय पंचाग नाम भूलना
स्वाभिमानी का कार्य नहीं है
ये नया वर्ष स्वीकार नहीं है ।
साहित्यकार लिखते रहते
नव वर्ष पर गाना गीत
आ रहा नव वर्ष ईस्वी
सारे जग का बनकर मीत
बधाईयाॅ और संदेशा भेज
प्रचारित प्रसारित करते है
अपने नववर्ष पर लिखने
उच्च कोटि का जोश नहीं है
ये नया वर्ष स्वीकार नहीं है ।
एक जनवरी का कैलेंडर
प्रतिपदा से हो सकता है
दिनांक भले ही हो अंग्रेजी
प्रतिपदा तक चल सकता है
अपना हमको कब भाता
कहने को यह मन करता है
उड़ा रहे नव सन पर गुलछर्रे
स्वछंदता अपना व्यवहार नहीं है
ये नया वर्ष स्वीकार नहीं है ।