नववधू
नवसृजन -54
शीश पर ओढ़नी लाज की
रंग लाल पाया ।
प्यार ,समर्पण का ओढ़ घूंघट
पति गेह पाया।
सुहाग सिंदूर भर भाल पर
माथे टिकुली लगाया।
बना निशानी सुहागन की
वधू ने पिया पाया।
कर्ण झुमके ,कंठ हरवा
ससुराल की मर्यादा
कर कंगन ,कलाई चूड़ी
खनखन खनके सजना।
पाँव की पायल अल्हड़ मोरी
बोले,छूटा बाबुल तेरा।
कटि करधनी पहन चली
संकेत ममत्व का ले ।
काजल ,कपोल लाली बोले
दहलीज में लाज रहे ।
कर सोलह सिंगार नार
आभूषण पहन सजी
नाक की बेसर मान मन में
धड़कन सँभाल चली।
दुनियाँ कहती जिसको सँवरना
नहीं आभूषण वो प्यारे
दो कुल की लेकर शाख ,मान
ले चली नवयौवना
वस्त्राभूषण के सहारे।
प्रतीक है सिंगार सारा यह
नवषोड़सी जो पहने।
नत नयन ,मदिर गति ,कंपित गात
धर धीर ,यौवन भार
साथ कुल की आन चले।
पाखी