नवल किरण
दैनिक रचना
विषय – नवल किरण
दिनाँक- 28/10/2020
दिन-बुधवार
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एक नवल किरण हरती तमस, बिखेरे पुंज उजियास का!
एक आस जगाए चित्त में और, अंश है सकल प्रयास का!!
नवांकुर की बन नवचेतना, हिलोर उमंगो की ले आती है!
नित स्वप्न सजाएँ नूतन, आसमां अरमानों संग पाती है!!
छिपती छिपाती गिरती संभलती, राह सबको दिखाती है!
हताश मन भी करती रोशन, तिलक आस का लगाती है!!
करती है कुमकुम आगाज़ का, नव तरंग नव ऊर्जा लिए!
बढ़ती हरदम अग्रज आरोही, दिनकर सुता का दर्जा लिए!!
सहस्त्र श्वेत कण समेट स्वयं , रग-रग में संचार करती है!
मायूसी को परे हटा पथ से, हौसले से अपार भरती है!!
भव समूचे राष्ट्र का लेकर, चल पड़ती है अपने आँचल में!
सींचती है कण-कण तृण-तृण, नीर भर अपने प्राजंल में!!
रचती है अपने कर्मों से, अपना खुद ही वह प्रभात डेरा !
फिर नव जाग्रत होने को, राह तकती कब होगा सबेरा!!
रेखा कापसे
होशंगाबाद मप्र
रचना पूर्णतः स्वरचित, मौलिक, सर्वाधिकार सुरक्षित!