नवरात्रि
घर-घर घटस्थापना देख, मां अंबे हो रही हर्षित नौ दिन,नव रूप लिए, दुर्गा होती शोभित सजे गए मंदिर देवी के, लगे नए पंडाल हवन, कीर्तन, रामायण, सजे पूजा के थाल जिस घर ज्योति जले माता की, रोशन हो गए जीवन अन्न,धन,मां की कृपा से बरसे,बरसे ममता का सावन नव दुर्गा के दरस की खातिर,कर रहे बड़े आयोजन मनुज की ओछी सोच देख, मां का भी अकुलाया मन क्यूं स्वार्थ में हो कर अंधा तू, कर रहा है घोर पाप बेटे की झूठी आस लिए, क्यूं बेटी बनी अभिशाप नारी भी मेरा ही स्वरूप, मूरत की करते पूजा उसकी गर तुम करो कदर, घर स्वर्ग बने समूचा कन्या, कंजक, नारी, दुर्गा, सहनशील धरा सी बोझ बढ़े धरती पर जो, फट प्रलय दिखाए वो भी उसको न अपमानित कर, देवी को दुर्गा रहने दो असुरों का संहार करे, दुर्गा “काली” बन जाए तो कर सम्मान, दे दूं वरदान, हो जाऊं गर प्रसन्न मान बढ़े तेरा भी निस दिन, सुख, समृद्धि,बसे कण-कण..