नवरात्रि
अश्रुधार भरी आंखों से, किस विधि दर्शन पाऊं मां, मन मेरे संताप भरा है, मैं कैसे मुस्काऊं मां। कदम-कदम पर भरे हैं कांटे, ऊंची-नीची खाई है, दुःखों की बेड़ी पड़ी पांव में, किस विधि चलकर आऊं मां। अश्रुधार भरी आंखों से, किस विधि दर्शन पाऊं मां। सुख और दुःख के भंवरजाल में, फंसी हुई है मेरी नैया, कभी डूबती, कभी उबरती, आज नहीं है कोई खिवैया। छूट गई पतवार हाथ से, किस विधि पार लगाऊं मां, अश्रुधार भरी आंखों से, किस विधि दर्शन पाऊं मां। पाप-पुण्य के फेर में फंसा हूं, मैंने सुध-बुध खोई मां, अंदर बैठी मेरी आत्मा, फूट-फूटकर रोई मां। बोल भी अब तो फंसे गले में, आरती किस विधि गाऊं मां, अश्रुधार भरी आंखों से, किस विधि दर्शन पाऊं मां। पाप-पुण्य में भेद बता दे, धर्म-कर्म का ज्ञान दे, मेरे अंदर तू बैठी है, इतना मुझको भान दे। फिर से मुझमें शक्ति भर दे, फिर से मुझमें जान दे, नवजात शिशु-सा गोद में खेलूं, फिर बालक बन जाऊं मां। तू ही बता दे, किन शब्दों में, तुझको आज मनाऊं मां, अश्रुधार भरी आंखों से, किस विधि दर्शन पाऊं मां।