नवरात्रि (नवदुर्गा)
नवदुर्गा
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मां दुर्गा के नवरूपों में, प्रथम शैलपुत्री का ध्यान।
पुत्री रूप में इनको पाकर, पर्वतराज धन्य हिमवान।
कर में कमल त्रिशूल सुशोभित, अर्धचन्द्र विराजित भाल।
करे सवारी नित्य वृषभ की, सबको देती शुभ वरदान।
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ब्रह्मचारिणी माता का शुभ, तपस्विनी का है रूप।
करमाला के साथ कमण्डल, नैसर्गिक छवि भव्य अनूप।
नवदुर्गा में स्थान दूसरा, सत्य हृदय से कर लें ध्यान।
मिट जाएगा तम जीवन का, खूब खिलेगी उजली धूप।
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परम शान्तिदायक कल्याणी, तन है सुन्दर स्वर्ण समान।
तृतीय चन्द्रघन्टा देवी का, नैसर्गिक है रूप महान।
दस हाथों में अस्त्र शस्त्र हैं, युद्ध हेतु रहती तैयार।
सिंहवाहिनी मां का अर्चन, करता हर एश्वर्य प्रदान।
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कूष्माण्डा दुर्गा चतुर्थ है, करती सूर्य लोक में वास।
अखिल सृष्टि की यही रचयिता, सभी सिद्धियां इनके पास।
सिंह वाहिनी अष्टभुजा मां, कण कण में है इनका तेज।
पावन कृपा दृष्टि पाने हित, नित्य सभी हम करें प्रयास।
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करें स्कंदमाता की पूजा, नवदुर्गा में पंचम स्थान।
सिंहवाहिनी पद्म विराजित, विजय दिलाती मातु महान।
नवरात्रि में करें उपासना, भक्ति भावमय मन हो खूब।
शुभ्र वर्ण है कमल करों में, देती भक्तों को वरदान।
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सिंहरूढ़ा मां कात्यायनी, नवदुर्गा में षष्ठ स्थान।
खड्ग पद्म सँग शोभा न्यारी, कर मुद्रा वर अभय प्रदान।
कात्यायन ऋषि की कन्या में, ब्रह्मा श्रीहरि शिव का तेज।
महिषासुर को मार गिराया, किया शक्ति का जब संधान।
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सप्तम दुर्गा कालरात्रि है, कंठ सुशोभित विद्युत माल।
घने तमस सा रूप भयंकर, गोल नयन है बिखरे बाल।
गर्दभ वाहन खड्ग शूल धर, करती है वर अभय प्रदान।
श्वास और प्रश्वास से उठती, अग्नि की लपटें अति विशाल।
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रूप धवल आभामंडित है, नवदुर्गा में अष्टम स्थान।
वर अभय देती भक्तों को, है वृषारूढ़ा मातु महान।
देव ऋषिगण करें आराधन, करती मां जग का कल्याण।
डमरू त्रिशूल कर में शोभित, शिव इनको देते वरदान।
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सभी सिद्धियां देने वाली, करें सिद्धिदात्री का ध्यान।
नवदुर्गा में स्थान नवम है, कमलासन पर विराजमान।।
चार भुजाओं में थामे है, शंख चक्र और गदा पद्म।
महादेव इनके आराधक, प्राप्त किया करते वरदान।
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©सुरेन्द्रपाल वैद्य, ११/१०/२०२४