नवरस
कुंडलिया
नव रस मिलके रच रहे,जो सुंदर आकार।
मन मंदिर में बस रहे,ये मोहक अवतार।
ये मोहक अवतार,मुदित है सुंदर काया।
राधा कान्हा रूप,विदित है मोहन माया।
कहें प्रेम कवि राय,सुरीला होता सबरस।
हो सुंदर साकार,सजीला होता नवरस।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव,प्रेम