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30 May 2024 · 1 min read

इक छाया सी

इक छाया सी
आशीषें बरसाईं मुझ पर,
सदा प्यार वर्षाया ।
मुझ नादान, नवेली को,
जिनने अनुभवी बनाया।

समझ न पाई कभी प्रेम की,
लहरें जो मन में थीं।
दे सर्वस्व मुझे मुझसे कुछ,
आश्वस्ति बस चाही थी।

जाना मैंने नहीं किंतु मैं ,
कहां बता पाई थी।
देकर कुछ आश्वस्ति नहीं,
कुछ बात बता पाई थी।

सिर्फ खोल लेने से कोई,
पाती समझ न आती।
सिर्फ झांक लेने से मन की,
थाती समझ न आती।

अनुभव के आगे गुमान का,
तथ्य बड़ा छोटा है।
एक मौन के आगे नभ भर,
कथ्य बड़ा छोटा है।

उन आशीषों का मतलब मैं,
आज समझ पाई हूं।
करने को कुछ नहीं बचा,
मैं खुद से शर्माई हूं।

नहीं अन्य वे कोई,
सदा जो थीं मुझ पर छाया सी,
मेरी सासू मां ही थीं,
मुझ पर ममता माया सी।

इंदु पाराशर

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