नवगीत
पंथ
वीर सदा बढ़ता चलता है लक्षित पथ पर ,,अपने मन में निर्भय होकर
जान धर्म की महिमा अद्भुत कर्म मार्ग में श्रद्धा रख कर
मृत्युंजय हो चलता रहता ,,भावों की धारा बरसाकर
संहारों का अग्रदूत बन लक्ष्य सदा निर्मल नीलांबर
योगी सा है ध्यानमग्न वह ,,अंतर का हर दीप जलाकर
कुसुम रूप में अचल खड़ा हो । पथ को सदा सुवासित करता
त्यागा अमृत कलश शंकर ने ॥कालकूट स्वीकार किया
वही जिया साचा इस जग में जो जीवन को हार जिया
अपनाई है यही सीख इस हर पल बढ़ते वीर ने
बन दधीचि सदा अस्थिकलश को जनमंगल हित दान करो
काल चुनौती हमें दे रहा ॥
नव लय का निर्माण करो
बन अभिमनु करो सामना चक्रव्यूह को तोड़ दो
मतवाले हो कभी न सोचो क्या पास क्या दूर हो
साहस के गीतों में झिंझरी से सदा झाँकती उषा है
कभी न उस पर रोष दिखा पाती निठुर निशा है
सुख के नूतन मेघ मल्हारें गाएँगे ,
,पावन भावों की धारा बरसाएँगे
यही सोच जब साथ रहेगा जीवन भर ,,
उठे मनुज के हाथ रहेंगे जीवन भर
शोर्य सत्य साहस का परचम कोई झुका न पाएगा ॥
सच्चे वीरों का यशगान जगत ये गाएगा ।।