नवगीत
बदल गए है सब प्रतिमान
अस्ताचल में सच का सूरज
हुआ झूठ का नवल विहान,
त्याज्य हुआ पंचामृत पोषक
मैला लगता गंगा नीर,
तीर्थाटन है सैर-सपाटा
घूम-घूम खींचें तस्वीर।
नागफनी की पूजा होती
तुलसी झेल रही अपमान।
हाय-बाय पर हम आ पहुँचे
बंद नमस्ते और प्रणाम,
सिसक रहा है दौर दुखी हो
फैशन के कारण बदनाम।
अंग-अंग जिनमें से झाँके
पहन रहे ऐसे परिधान।
नज़रें झुका उँगलियाँ चलतीं
मोबाइल सब पकड़े हाथ,
पास-पास ही रहते हैं सब
कोई नहीं किसी के साथ।
मौन व्रती बन बैठा है घर,
मरघट-सा लगता सुनसान।
डाॅ बिपिन पाण्डेय