नवगीत
बैठे ठाले ध्यान लगा लें।
प्रभु को अपना मीत बना लें।।
चार प्रहर का है ये जीवन,
नश्वर है नर तेरा ये तन,
माटी में इसको मिलना है,
मन हो उतना आज सजा लें।
प्रभु को अपना मीत बना लें।
बैठे ठाले ध्यान लगा लें।।
बंजर ऊसर खेत पड़े हैं।
बैल सांड बन दूर खड़े हैं।।
यन्त्रों से जोतेंगे भू को,
गाय घरों से दूर भगा दें।
बैठे ठाले ध्यान लगा लें।
प्रभु को अपना मीत बना लें।।
राजनीति की बदलीं चालें।
मौका मिले देश ही खालें।।
अब मतदान संभल कर करना,
सत्ता को मिल सबक सिखा दें।
प्रभु को अपना मीत बना लें।।
बैठे ठाले ध्यान लगा लें।।।
कौशल कुमार पाण्डेय “आस”