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17 Jul 2019 · 1 min read

नवगीत

चले गये बादल

आये तो थे, किन्तु चमककर,
चले गये बादल

सघन स्वरूप हवाओं का रुख,
गति के सँग घूमा
मानसून से मिला, नमी का,
भौतिक मुख चूमा
इंद्रदेव के, मंत्रसूत्र में,
ढले गये बादल

तेज हवा के, राजमार्ग से,
आसमान चौका
मड़ई, चूक गई अपनी छत,
छाने का मौका
ऊपर सूरज, नीचे धरती,
दले गये बादल

बादल घिर तो गये, कहीं भी,
झींसी नहीं झरी
फूलों की अनमनी पँखुड़ियाँ,
रोती झिरी-परी
किस मौसम विभाग के द्वारा
छले गये बादल

बस अड्डे के पीछेवाला,
नाला अंध पड़ा
जलनिकास की, बाधित नाली,
रस्ता गंध सड़ा
कालिख, कथित प्रगति के मुँह पर,
मले, गये बादल

शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ

Language: Hindi
512 Views
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