नवगीत
पेट को मैं टाँग आया
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भूख की उस अरगनी पर
तंग आकर
पेट को मैं टाँग आया
असह दुःख की मकड़ियों का
सह चुका प्रतिबंध आँसू
जोड़ डाला शकुनियों से
गीत का अनुबंध आँसू
धूप की छत में नमी है
कुछ कमी है
आधुनिक है स्वाँग आया
गाँव के पग की गली में
शहर का अतिक्रम हुआ है
घने जंगल कट रहे हैं
खेत वृन्दावन हुआ है
हो चुका है नद मरुस्थल
नदी बाँगर
गाँव गँवई धाँग आया
चाहता तो था नहीं पर
क्या करें मजबूरियाँ हैं
मील के ही पत्थरों में
पास होकर दूरियाँ हैं
सुबह ही कुछ मन्दिरों से
सिर झुकाकर
मोक्ष कौशल माँग आया
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ