नवगीत
नवगीत
परिवर्तन चुपचाप हो गया
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कानो-कान खबर ना आई
ऐसा क्रिया-कलाप हो गया
अनायास ही मौसम बदला
परिवर्तन चुपचाप हो गया
केवल बातें रहे बनाते
समझ रहे थे मूर्ख सभी को
खुद को धुला दूध का बोलें
और बतायें धूर्त सभी को
जाति -धर्म का भेद बताना
ही जैसे अभिशाप हो गया
वादे किये,किये ना पूरे
रहे उडा़ते सिर्फ बबूले
प्रजातन्त्र को घायल करके
सारी मर्यादायें भूले
देख हाल ऐसा ईश्वर के
मन में भी संताप हो गया
उड़ते रहे हवा में हरदम
धरी रह गयीं मन की बातें
काम न आईं जो समझायीं
चालें,शकुनी वाली घाते
नाज़ायज,ज़ायज बतलाया
शायद यह भी पाप हो गया
बडे़-बडे़ सपने देखे थे
लेकिन पल में चूर हो गये
ऐसी चली विरोधी आँधी
जनमत से मज़बूर हो गये
जिसे इन्होंने व्यर्थ बताया
वो ही इनका बाप हो गया
कानो-कान खबर ना आई
ऐसा क्रिया-कलाप हो गया
अनायास ही मौसम बदला
परिवर्तन चुपचाप हो गया
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~जयराम ‘जय’
‘पर्णिका’ बी,11/1 कृष्ण विहार,आ.वि.
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