नवगीत – बुधनी
नागफनी सी
पाँव में उसके फटी बिवाई।
नंगे पैरों से ही सिर पर ,
बोझा लेकर चलती।
माथे पर है टिकुली लटकी,
रही पसीना मलती।
पेट की रोगी,
कर नही पाती ठीक दवाई ..
पाँच बरस का उसका छोटू,
पढ़ने की ज़िद करता।
बड़की की बढ़ने की चिन्ता ,
बाप नशे में रहता ।
मजदूरी से,
क्या – क्या करती एक लुगाई ..
अभिशापों की पहने लुगरी
फटे भाग्य की कुर्ती।
ढँक लेती है स्वाभिमान को
गज़ब की उसकी फुर्ती।
कर्जे में है,
बुधनी बचे न रोज कमाई….