नवगीत—- जीवन का आर्तनाद
जीवन का आर्तनाद
पिघला लो
पथराए मन को
फिर सुन जीवन का
आर्तनाद ।।
कधि प्राकृतिक
कधि नैसर्गिक
अंतर्मन में अंकुर विनाश
आसन्न समय के
चेहरे पर
युग वत्सलता का
कुटिल हास
सुलगा लो
अलसाये तन को
फिर सुन जीवन का
आर्तनाद ।।
झर झर झरते
कण कण मिटते
जन मानस मन के
विहँस हास
पल पल
पत्तों पर जीवन के
चुपचाप फिसलते
श्वास श्वास
समझा लो
पहले निज मन को
फिर सुन जीवन का
आर्तनाद ।