नवगीत।रातों मन के अंधेरों मे तस्वीरें चलती रहती है ।
नवगीत
रातों मन के
अंधेरों मे
तस्वीरें चलती रहती है ,,-2
शामों से ख़ामोशी ठहरी रहती है मेरे घर ।
फ़ैली रहती है रातों भर तन्हाई की चादर ।
सुबह सबेरे
मन को घेरे
परछायीं बढ़ती रहती है ।
रातों मन के अंधेरों में,,,,,,,,,,
सन्देहों की जाल बिछाती जाती याद सलोनी ।
सोने देती मुझको कैसे स्वप्नों की अनहोनी ।
चक्षु झीलों से
निकल निकल
दुख सरिता बहती रहती है ।
रातों मन के अंधेरों मे ,,,,,,,,,,,,,
धूमिल आहट को धोखे मे रखतीं रातें काली ।
सुबह सजाये सूरज लाता भावुकता की थाली ।
मन के बागों
मे ख़ुशबू भर
पुरवाई बहती रहती है ।
रातों मन के अंधेरों मे ,,,,,,,,,,,,
राम केश मिश्र