नवगीत।मानव आदमखोर हो गया।
नवगीत। मानव आदमखोर हो गया ।।
झूठा लम्पट बन रहा, लूटे देश समाज ।
स्वार्थ सँजोता दूर से ,बन बैठा है बाज ।।
सत्यवादिता थी
घूँघट सी
जरा हटी क्या चोर हो गया ।।
मानव आदमखोर हो गया ।। 1।।
चुन चुन कर खाता रहा,चिड़ियों सा वह घूस ।
अवसर देखा रच प्रपंच,लिया सभी को मूस ।।
चुहचुहिया से
बना छछुंदर
लगा नाचने मोर हो गया ।
मानव आदम खोर हो गया ।।2।।
लेकर विष बोता रहे , जाति धर्म का नाम ।
मन उपजी है नीचता ,करता काम तमाम ।।
जैसे देखी
सुन्दर काया
हवसी भावविभोर हो गया ।।
मानव आदमखोर हो गया ।।3।।
करता फिरे ढ़कोसला, करे कुटिल अपमान ।
लगा मुखौटा दोगला, छुपा हुआ हैवान ।।
चाटुकारिता
करते करते
मुँह काला पर गोर हो गया ।।
मानव आदमखोर हो गया ।।4।।
पिछलग्गू ,चुप्पा बने ,लूट रहे है देश ।
तोड़ मरोड़ के नीचता, कर देते है पेश ।।
उठ जागो सब
करो सामना
आखिर कब का भोर हो गया ।।
मानव आदमखोर हो गया ।।5।।
©राम केश मिश्र