“नर बेचारा”
“नर बेचारा”
कितना हूं मैं लाचार
अनसुलझी मेरी जिंदगी
व्यस्तता की कगार पे खड़ा
मायूसी चाहे मचाए शोर,
मुस्कुराना गया भूल मै
मन भाए होटल का खाना
तकिए के नीचे हरदम फोन
सांय हो चाहे दिखे भोर,
आनंदित नहीं अब प्रकृति करती
ना गिर सरिता भरते उमंग
पड़ा सुस्ताया तन मेरा
पपीहा गाए चाहे नाचे मोर,
चिर परिचित से दूर हुआ
दबा नौकरी के बोझ तले
नेट से यारी लगे प्यारी
तिमिर पसरा हुआ है घोर।
Dr.Meenu Poonia