नर्सिंग दिवस विशेष
नर्सिंग की नज़ीर-फ्लोरेंस नाईटिंगेल
आधुनिक दुनिया में फ्लोरेंस नाईटिंगेल ने आधुनिक नर्सिंग की नींव रखी है। नाईटिंगेल ने नर्सिंग व्यवसाय को एक वैज्ञानिक आधार पर व्यवस्थित किया था | उसने सार्वजनिक स्वास्थ्य में उत्कृष्ट योगदान दिया | वह ‘द लेडी विद द लैंप‘ के नाम से जानी जाती है| वह एक अद्भुत व्यक्तित्व थी, जिसने बेघर होकर जीवन के आराम और विलासिता को खारिज कर दिया और बीमारों और घायल लोगों की निस्वार्थ सेवा में खुद को समर्पित कर दिया। फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म 12 मई 1820 को फ्लोरेंस, इटली में हुआ था। वह एक अमीर परिवार से थी। उनका नाम उसके जन्म स्थान फ्लोरेंस की जगह के नाम पर रखा गया था। उसने अपने पिता से ग्रीक, लैटिन, फ्रेंच, जर्मन, इटालियन, इतिहास, दर्शन और गणित सीखा है ! फ्लोरेंस ने शादी के साथ-साथ विलासी जीवन को अस्वीकार कर दिया।
फ्लोरेंस की बहन पार्थेनोप ने कहा कि उसे गणित में बहुत ज़्यादा दिलचस्पी थी ! गणित के सबक़ और फॉर्मूले याद करने के लिए वो दिन-रात मेहनत किया करती थी !
उन्नीसवीं सदी की परंपरा के मुताबिक़, 1837 में नाइटिंगेल परिवार अपनी बेटियों को यूरोप के सफ़र पर ले कर गया ! ये उस वक़्त बच्चों की तालीम के लिए बहुत ज़रूरी माना जाता था ! इस सफ़र के तजुर्बे को फ्लोरेंस ने बेहद दिलचस्प अंदाज़ में अपनी डायरी में दर्ज किया था !
वह हर देश और शहर की आबादी के आंकड़े दर्ज करती थी ! किसी शहर में कितने अस्पताल हैं, दान-कल्याण की कितनी संस्थाएं हैं, ये बात वो सफ़र के दौरान नोट करती थी ! हालांकि फ्लोरेंस की मां इसके ख़िलाफ़ थी, फिर भी उसे गणित की पढ़ाई के लिए ट्यूशन कराया गया ! सफ़र के आख़िर में फ्लोरेंस ने एलान किया कि ईश्वर ने उसे मानवता की सेवा का आदेश दिया है, तो उसके मां-बाप परेशान हो गए !
फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने अपने मां-बाप से कहा, “ईश्वर ने मुझे आवाज़ देकर कहा कि तुम मेरी सेवा करो ,लेकिन उस दैवीय आवाज़ ने ये नहीं बताया कि सेवा किस तरह से करनी है !”
वह मानवता की सेवा के लिए स्वतंत्र रूप से काम करने की इच्छुक थी ! उसके माता-पिता चाहते थे कि वह एक खुश और आरामदायक घरेलू जीवन जीए, लेकिन वह मानव जाति की सेवा करना चाहती थी।
फ्लोरेंस ने कहा कि वो सैलिसबरी में जाकर नर्सिंग की ट्रेनिंग लेना चाहती है. लेकिन मां-बाप ने इसकी इजाज़त देने से इनकार कर दिया !
लेकिन फ्लोरेंस मां-बाप को मनाने की कोशिश करती रही ! 1849 में एक लंबे प्रेम संबंध के बाद फ्लोरेंस ने एक युवक से शादी से इनकार कर दिया और कहा कि उसकी क़िस्मत में कुछ और ही लिखा है ! वह मां-बाप की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ फ्लोरेंस लंदन, रोम और पेरिस के अस्पतालों के दौरे करती रहती थी !
साल 1850 में नाइटिंगेल दंपति को ये एहसास हो गया था कि उनकी बेटी शादी नहीं करेगी ! इसके बाद उन्होंने फ्लोरेंस को नर्सिंग की ट्रेनिंग लेने के लिए जर्मनी जाने की इजाज़त दे दी ! उसके माता-पिता को अंततः अपनी बेटी के दृढ़ संकल्प के आगे झुकना पड़ा। 1844 में, फ्लोरेंस ने नर्सिंग का अध्ययन करने का निर्णय लिया ! फ्लोरेंस ने जर्मनी और फ्रांस में नर्सिंग में प्रशिक्षण प्राप्त किया ! तीन साल के में वह सार्वजनिक स्वास्थ्य और अस्पतालों की विशेषज्ञ बन गई !फ्लोरेंस को ये आज़ादी मिलने से उनकी बहन पार्थेनोप को इतना ज़बरदस्त झटका लगा कि उसका सन् 1852 में नर्वस ब्रेकडाउन हो गया ! मजबूरी में फ्लोरेंस को अपनी ट्रेनिंग छोड़कर बहन की सेवा के लिए 1852 में वापस इंग्लैंड आना पड़ा ! 1853 में फ्लोरेंस को लंदन के हार्ले स्ट्रीट अस्पताल में नर्सिंग की प्रमुख बनने का मौक़ा मिला ! आख़िरकार सेवा का उसका ख़्वाब पूरा होने वाला था ! 1853 में क्रीमिया का युद्ध शुरू हो गया था. अख़बारों में आ रही ख़बरों ने ब्रिटिश सैनिक अस्पतालों की दुर्दशा की दास्तानें बतानी शुरू कीं.
क्रीमिया युद्ध के दौरान, फ्लोरेंस तुर्की में ब्रिटिश आर्मी अस्पताल में काम किया। वह इटली की 40 सदस्यीय नर्सिंग टीम के एक हिस्से के रूप में वहां शामिल हुई। उसने अपने खुद के पैसे खर्च करके अस्पताल की स्थिति में सुधार किया। एक सरकारी सैनिटरी कमीशन ने भी अस्पताल में व्यवस्था और सफाई बहाल करने में उसकी मदद की। उसके आगमन के छह महीने के भीतर, मृत्यु दर में तेजी से कमी आई है ! यह सीधे तौर पर उनके संपूर्ण अवलोकन के माध्यम हुआ इससे स्वच्छता की स्थिति और उपचार के बीच का सहयोग स्थापित किया जा सका । फ्लोरेंस ने पर्याप्त प्रकाश, आहार, स्वच्छता और सेवा गतिविधियो पर जोर दिया। बीमारों और घायल लोगों की सेवा के लिए उनके निस्वार्थ समर्पण के कारण, उन्होंने उनके लिए आशा की एक किरण जगाई।
यह कोई अतिश्योक्ति नहीं थी कि इन अस्पतालों में उन्हें ‘मंत्री दूत’ माना जाता था। जैसे ही वह अस्पताल के गलियारों मे उतरती, हर सिपाही का चेहरा उसकी नजर में आभार व्यक्त करता दिखाई दिया। जब सभी चिकित्सा अधिकारी रात के लिए सेवानिवृत्त होते और चुप्पी और अंधेरे में सो जाते, तो वह मरीजों को संभालने के लिए अकेली रहती थीं। रात में मरीजों का दौरा करते समय, वह अपने हाथ में लेम्प रखती। इसलिए, वह लैंप के साथ द लेडी विद लैंप के नाम से जानी जाने लगी मई 1857 में, सेना के स्वास्थ्य को लेकर रॉयल कमीशन की स्थापना की गई। नाइटिंगेल ने आयोग के लिए एक गोपनीय रिपोर्ट संकलित की। इसमे सेना के चिकित्सा और अस्पताल प्रशासन के पूरे क्षेत्र को कवर किया गया। बाद में, निजी तौर पर 1858 में ब्रिटिश सेना के स्वास्थ्य, दक्षता और अस्पताल प्रशासन के मामलों पर अपने नोट्स के रूप में मुद्रित किया गया। फ्लोरेंस नाइटिंगेल ब्रिटिश अस्पतालों में उनके सुधारों के लिए जानी जाती हैं जिनमें बुनियादी सुविधाएं भी नहीं थीं।
उसने अस्पताल में नर्सिंग सिस्टम का प्रबंधन किया। 1860 में, उन्होंने लंदन में नर्सों के लिए नाइटिंगेल स्कूल की स्थापना की। यह दुनिया में अपनी तरह का पहला संस्थान है। इसे अब ‘फ्लोरेंस नाइटिंगेल स्कूल ऑफ नर्सिंग एंड मिडवाइफ़री’ कहा जाता है ! नाइटिंगेल महिलाओं के लिए पेशे के रूप में नर्सिंग प्रशिक्षण की संस्थापक भी है। फ्लोरेंस ने ‘नोट्स ऑन नर्सिंग’ भी लिखा जिसे 1860 में प्रकाशित किया गया था। यह किताब नाइटिंगेल स्कूल और अन्य नर्सिंग स्कूलों के पाठ्यक्रम की आधारशिला के रूप में काम करती है। फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने पुरुष-प्रभुत्व वाले समाज में एक प्रमुख स्थान प्राप्त किया। उसने अपने पुरुष सहयोगियों को अपने काम में निर्देशित किया। ब्रिटिश भारत के सफल वाइसरायो ने अपने कार्यालयों को संभालने से पहले उनसे परामर्श लिया। हालांकि, बढ़ते नारीवादी आंदोलन के साथ उनकी कोई सहानुभूति नहीं थी।
फ्लोरेंस ने आध्यात्मिक मातृत्व की अवधारणा भी विकसित की। उसने खुद को ब्रिटिश सेना के पुरुषों की मां के रूप में देखा, जिसे उन्होंने बचाया था। उसने उन सैनिकों को ‘मेरे बच्चों’ कहकर पुकारा ! फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने क्रीमिया युद्ध के दौरान बीमार और घायल लोगों के लिए दिन-रात काम किया। वह शारीरिक तनाव से पीड़ित 1861 मे बेहोश हो गईं। फिर भी, उसने अपना प्रयास जारी रखा। 1901 तक, वह पूरी तरह अंधी हो गई ! फ्लोरेंस 1907 में ब्रिटेन के राजा, एडवर्ड सप्तम से ऑर्डर ऑफ़ मेरिट प्राप्त करने वाली पहली महिला है। 13 अगस्त, 1910 को उसकी मृत्यु हो गई। मृत्यु से पहले, उन्होंने वेस्टमिंस्टर एब्बी में एक राष्ट्रीय अंतिम संस्कार और दफन करने की पेशकश से मना कर दिया ! फ्लोरेंस नाइटिंगेल त्याग समर्पण और दया की अवतार है। उसके महान जीवन ने सदैव प्रेरित किया है ! नाइटिंगेल की नर्सिंग हमेशा दुनिया के लोगों को प्रेरित करती रहेगी।
© हरीश सुवासिया
आर.ई.एस.