नर्म नर्म एहसास
डा ० अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
नर्म नर्म एहसास
रुई सा नरम नरम होता हैं
एहसास नारी मन का ||
हवा भी चले हल्की हल्की
तो उडड्न छू होते हैं ||
एहसास नारी मन का ||
मुझको इनका कुछ भान नहीं था
युं तो मैं अन्जान नहीं था ||
एहसास नारी मन का ||
अभ्यस्त नहीं था जीवन के शुरुआती
पल में भूल करा करता था ||
एहसास नारी मन का ||
देता था झक्झोर तुनक के
मुझको न था कुछ भी ज्ञान ||
एहसास नारी मन का ||
धीरे धीरे पकता आया जैसे
कोई आम जैसे कोई आम ||
एहसास नारी मन का ||
कोमलता ने डारा डेरा
नरम नरम सा दिल था मेरा ||
एहसास नारी मन का ||
दिल के द्वार उगा इक अंकुर
नाम दिया था जिसे इश्क का ||
एहसास नारी मन का ||
उसने सब कुछ समझाया प्रीत जगी
फिर आँख लडी फिर जागा प्रेम आपार ||
एहसास नारी मन का ||
तब मैं जाना ओढा अम्बर भूमि बिछौना
रग रग राग बहा अन्जाने, प्रेम का, मनमाना ||
एहसास नारी मन का ||
तब ही मैने पहचाना ,
एहसास नारी मन का
नरम नरम सा कोमल कोमल
जैसे हो को गीत सुबह का ||
एहसास नारी मन का ||