नर्मदा जी पर मनहरण
1
देवियों का रूप माना जाता मेरे देश में तो
नदियों को सभी यहां मैया जी पुकारते।
विरह विवाह प्रतिशोध की भी गाथाएं हैं
नदी नर्मदा की भी तो विरहा स्वीकारते।।
दासी जुहिला के प्रेमपाश में फंसा था प्रेमी
सोनभद्र धोखेबाज को सभी धिक्कारते।।
रूठ के बताने चली दिशा को बदल कर
मिली नहीं फिर कभी, दिखी उसे टारते।।
2
कन्टक अमर पर उदगम होता हुआ
चली कलकल चली चली जोर शोर से।
भेड़ाघाट के प्रपात की छवि निहार ही लो
धरी नरमदा माता रूप अति जोर से।।
एम पी महाराष्ट्र गुजरात की सीमा से ही
खाड़ी खम्भात करी कूच पुरजोर से।।
अपनी रवानी की ही, अपनी बयानी लगे
अपनी कहानी सी ही लगे बंधी डोर से।।
3
वनों को काट कर तुम क्या, लड़ाई जीत जाओगे?
बिना वन के यहां जीवन बता कैसे बिताओगे?
घुटेगी सांस तेरी तब खलेगी वो कमी तुमको
तुम्हारी भूल पे तुम ही, खुदी खुद गिड़गिड़ावोगे।।