नये विचार
विधा त्रेता दण्डक
मापनी- 12-12-12-12-12-12-12-12-12-12-12-12-12-1
विषय-नये विचार
नए विचार से लिखो चलो पसार के, नवीन पंख खोल के भरो उड़ान।
सुभाग कल्पना रहे नहीं रुके कभी, नदी प्रवाह धार सी रहे उठान।।
लगे प्रभात लालिमा सुवास सुंदरी, खिले प्रसून सी सदा बने सुभान।
बहे बयार शांत सी सहोदरी बने, मिटे प्रपंच भाव का बने सुजान।।
नया-नया नशा चढ़ा नई उमंग है, नवीन शब्द माल की सजी तरंग।
रहे सुजान ढूॅंढते कपाट बंद है ,दिमाग घूमता रहा बना मतंग।।
भरी कुदान गिद्ध सी मचा भूचाल है, कभी कपोत बुद्धि का बना मलंग।
सजीव चेतना लिए बनें वसुंधरा, रुके नहीं उजास की बने पतंग।।
ललिता कश्यप जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश