नये युग का निर्माण… !!
घर से निकला हूँ बेनीशां-सा,
शौक से निकला हूँ आसमां-सा..!
जाने कौन डगर, जाने कौन शहर,
दिल मे हजारों शिकवे और सवालों के कहर..!
मस्ती से निकला हूँ, एक खोज मे,
उड़ता चला हूँ हवाओ की मौज मे.. !
कुछ सवाल ही थे जिनके जवाब पाना था,
कुछ उलझें थे, कुछ नासमझ, बस निपटाना था..!
सोचा एक पेड़ कि छाह मे बैठकर,
फिर नींद ली गहरी छाह मे लेटकर… !
सफर तो अधूरा ही लगा, पर लगता है, मंजिल के करीब हूँ,
दिल कि धड़कन से आवाज आयी.. कि.. मैं तो तेरे रूबरू हूँ… !
तू जितने का हौसला जगा, खुद अपनी राह बना…
बस ! ज़ब मदहोशी मे आँखे खोली.. नींद भी जाते-जाते बोली…
मेहनत को तू कर दे तार -तार…
आसमां का सिर झुका दे और बन जा सूरज समान…
तब ही तू कर सकेगा… नये युग का निर्माण… !!