“नयी सोच”
गीता और कुरान बना लो नयी सोच को,
रामायण का गान बना लो नयी सोच को।
क़दम-क़दम चल देश की ख़ातिर अब वंदे,
भारत का गुणगान बना लो नयी सोच को।
धर्म और संस्कार की चादर ओढ़ सुजन,
संस्कृति हित ईमान बना लो नयी सोच को।
मेरे-तेरे में निज मन क्यों भटकाते,
अपना सकल जहान बना लो नयी सोच को।
स्वार्थ तिरोहित करके प्यारे जीवन में,
एक अच्छा इंसान बना लो नयी सोच को।
बीता बचपन और जवानी बीत रही,
अब तो हरि का ध्यान बना लो नयी सोच को।
चिंतन से निज जीवन बदलो तुम ‘प्रशांत’ अब,
दिल में रत् सद्ज्ञान बना लो नयी सोच को।
* प्रशांत शर्मा “सरल’,नरसिंहपुर
मो.9009594797