नयी सुबह में साहस पायें
पावन तृषा उठी जब मन में,
शुभाशीष की ध्वनियाँ आयें।
मनोदोष की होम-प्रविधि का,
वर्णन करतीं दिव्य ऋचाऐं॥1॥
वीरप्रसू है यह वसुंधरा,
रुधिर गर्व से भरा हुआ।
गरिमा के शुभ स्थापन पर,
मातृभाव कुछ खरा हुआ॥2॥
मधुर नाद अब गुंजित नभ में,
तम बीता आलोक पुकारे।
प्रात: की अरुणाभ उषा में,
कल-कल करते खगकुल सारे॥3॥
अब नूतन संकल्प लिए हम,
अपने पथ पर बढ़ते जाऐं।
श्रम का शुभ परिणाम मिलेगा,
नयी सुबह में साहस पायें॥4॥
(काव्यकृति -कुछ सौरभ बिखरा बिखरा सा)
@अशोक सिंह “सत्यवीर”