नयी बहुरिया घर आयी*
नई बहू से कर रहा,चित्त उल्लसित प्रीति ।
ब्याह लिया बेटा-वधू ,संस्कृति की शुभ रीति ।।1
प्रीति भोज अनुपम हुआ ,छक के खाए भोज ।
धवल चंद्रिका-सी वधू , उसके नयन सरोज ।।2
सुख की झिलमिल चाँदनी ,तनी दिखी थी रात ।
मधुर मनोहर थी सुबह ,खत्म न होती बात ।।3
विदा हुए सारे अतिथि ,सूना आँगन आज ।
खोज रही थी माँ वधू ,जिस पर उसको नाज ।।4
माँ चौखट को देखती ,वधू बुलाती पास ।
बैठी घर में खिन्न माँ ,टूट गई जब आस ।।5
नये जमाने की वधू , इतनी हुई समर्थ ।
मान किसी का वह न कर , समझे सब कुछ व्यर्थ।।6
बैकवर्ड सबको कहे ,सबसे ही कतराय ।
उल्टे-सीधी ड्रेस में ,बाहर-भीतर जाय ।।7
तरस गई माँ ठूँठ-सी, सुनने को दो बोल ।
वधू कभी समझी नहीं ,नव कुटुंब का मोल ।।8
धीरे-धीरे झर गये ,खुशियों के सब पात ।
मुस्कानें तो खो गईं ,घिरी अँधेरी रात ।।9
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
स्वरचित सृजन
वाराणसी
30/5/2022