#नयी गाथा
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★ #नयी गाथा ★
बिकते देख के जग में नाते
आँख मेरी भर आई
पीर मेरे हृदय की भगवन्
होवे जग के लिए सुखदायी
माटी से वात अलग कर दो
यह मिलन बड़ा दुखदायी
हे राम ! काहे यह ज्योति जलाई
हे राम ! काहे यह ज्योति जलायी . . . . .
रातें दिनों-सी धुली
दिनों में मिश्री घुली
भोर कोयल की कूक
साँझ साथिन चुलबुली
कर्म चुके मोल चुकाऊं कैसे
तूने तो हाट सजायी
हे राम ! काहे को ज्योति जलायी . . . . .
पँछी कैसे उड़े
पँख बोझिल बड़े
हत्यारे मनमोहन
नाते मोती जड़े
प्रेम की गलियाँ हो गईं मैली
रातों की कालिमा छायी
हे राम ! काहे यह ज्योति जलायी . . . . .
आँखों में सपने नहीं
अपनों-से अपने नहीं
आँच मोह की बुझी
कच्चे अब पकने नहीं
तेरा मेरा साथ पुराना
तेरी जगती न मेरे मन भायी
हे राम ! काहे यह ज्योति जलायी . . . . .
आस बुझने को है
सांस रुकने को है
सत्य-धर्म की ध्वजा
जैसे झुकने को है
न्यायतुला पाखंड-प्रपंच में
समकोण नहीं रह पायी
हे राम ! काहे यह ज्योति जलायी . . . . .
मन जब हारा करें
तुझे पुकारा करें
पानी नाक ऊपर बहे
कैसे धीरज धरें
मेरे रक्त से लिख नयी गाथा
जो तेरे मन में आई
हे राम ! काहे यह ज्योति जलायी . . . . . !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२