नया से भी नया
, नया से भी नया
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प्रकृति को मत छेड़िए,ये तो बहुत नायाब है !
है भले भौतिक-अभौतिक किन्तु ये नायाब है!!
सुन रहे हैं कुछ दिनों से साल तेइस जा रहा है-
पुष्प स्वागत को लिए हैं वर्ष चौबिस आ रहा है!
तीन सौ पैंसठ दिवस दिन पूर्व ये दिन भी नया था-
क्या हुआ जो हो पुराना हेय समझा जा रहा है!
प्रकृति भी ना जाने कब से आ रही व्यवहार में है-
यह भी तो होकर पुरानी क्यों न फेंकी जा रही है!
क्यों न कहते भोगते जो ऊबता है मन एक दिन –
यहाँ नये की ललक होगी मन में भी एक तो दिन !
किन्तु कुदरत में पुराना यूँ तो कुछ कुछ भी नहीं है,
जो नहीं तुमने जो देखा बस नया तुम को वही है !
क्या पुराना जो गया है सच में वो निर्मूल्य धा –
कर लिया उपयोग जी भर कहते अब निर्मूल्य धा !
आने दो नववर्ष आखिर वह नया कब तक रहेगा –
पर नया हो या पुराना बात तो अपनी कहेगा !
छोड़ दो सब वक्त पर ही क्रमिक संचालन करेगा-
मान्यताएँ पूर्ण होंगी तब कोई परिणाम होगा !
साधु बन जाओ अ-भागे जो दिखे वो सब नया है –
और आगे सोच रख्खो यहाँ नया से भी नया है !
बात है वो अलग जब तुम काम कर थक जाओ तब –
ढूँढ़ लेना कुछ बहाना दोष दे के गत को दे के तुम !
हाँ में हाँ कर हम तुम्हारी नव वरस स्वागत करें-
मन वही ही तन वही ही सब का सब स्वागत करें !
कूछ भी नया नहीं है जग में कुछ भी नहीं पुराना !
स्वारथ से सब नया-नया है स्वारथ गये पुराना !!
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C/R ,स्वरूप दिनकर , आगरा ।
31/12/2923
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