नया साल
” नया साल”
वही आकाश, वही सूरज
वही चंदा , वही तारे होंगे
नये साल में कहां कोई अलग नज़ारे होंगे।
बीतेंगी रातें वैसे ही,
टूट रहे सपने हज़ारों होंगे
कई पेट बिन रोटी के,
सिसक रहे प्यारे होंगे।
मंज़र हर ओर हिंसा का,
खून के नदी नाले होंगे।
सरहद पर गोलियों से,
शहीद कई दुलारे होंगे।
नशे की धुन में,
कई जवान सुध- बुध गवांए होंगे।
नशे के व्यापारी तो मानों,
धनी चोर बाजारी होंगे।
हर तरफ भाषण,
झूठे वादे और नारे होंगे।
खेत तो क्या,
घरों के भी अब बटवारे होंगे।
ओह! ये कैसा बुरा स्वपन,
‘ अरुणा’ तू देख रही।
डर मत!!
बापू गांधी के देश में।
कुशल सभी नज़ारे होंगे।
हर्ष और उल्लास की बहार में,
खुशियां समेट रहे सारे होंगे।
हां मुझे नया साल मनाना है,
आज दिसंबर के महीने का आखिरी दिन बीत जाना है।
अरुणा डोगरा शर्मा
मोहाली