नया साल
ये हमारी ज़िन्दगी का इक बरस फिर खा गया
इस दफ़ा भी तेज़ क़दमों से दिसम्बर आ गया
फिर सताने आ गया मन्ज़र बुढ़ापे का हमें
घर की खूंटी पर कलेंडर जब नया टाँगा गया
– अरशद रसूल
ये हमारी ज़िन्दगी का इक बरस फिर खा गया
इस दफ़ा भी तेज़ क़दमों से दिसम्बर आ गया
फिर सताने आ गया मन्ज़र बुढ़ापे का हमें
घर की खूंटी पर कलेंडर जब नया टाँगा गया
– अरशद रसूल