नया मोड़
नया मोड़
अरून और परी अपनी इकलौती बेटी महिषी को पूना के फ़र्ग्युसन कालेज के हास्टेल में छोड़ वापिस कार में अपने घर मुंबई जा रहे थे । दोनों के दिल भारी थे, दोनों के पास बात करने के लिए कुछ भी नहीं था । दोनों ही इस चुप्पी से घबरा रहे थे, बीस साल की शादी में यह शायद पहली बार हो रहा था कि वे एक दूसरे के सामने थे , पहले संयुक्त परिवार के बीच में थे और फिर महिषी सदा उनके बीच में थी ।
बहुत कोशिश के बाद अरून ने कहा, “ अब तुम्हें अपने लिए वक़्त मिला है , ज़िंदगी को फिर से शुरू कर सकती हो । “
परी ने कोई जवाब नहीं दिया तो अरून ने फिर कहा, “ अपना कुकिंग का ब्लॉग फिर से शुरू कर दो । “
“ और ?” परि ने व्यंग्य कसते हुए कहा ।
अरून ने उसकी उपेक्षा करते हुए कहा, “ चाहो तो बिज़नेस में मेरी सहायता कर सकती हो , एम . बी ए किया है तुमने ।”
परी की आँखों में आँसू आ गए ।
“ क्यों कुछ ग़लत कहा मैंने ?”
“ नहीं , तुमने कुछ ग़लत नहीं कहा , पर तुम मेरे मन का सूनापन नहीं समझ सकते । बच्चों के लिए सब कुछ छोड़ना और फिर बच्चों को जाने देना, यह हमारे लिए कितना मुश्किल होता है , यह तुम नहीं समझोगे ।”
अरून हंस दिया, “ वह मैं भले ही न समझ सकूँ, पर हम दोनों हैं न एक-दूसरे के लिए ।”
परी के आंसू अब और भी तेज़ी से बह निकले, “ तुम रहने दो यह सब अभी, मुझे रोने दो । “
घर आकर जीवन फिर ढर्रे पर आने लगा । परी नियम से सब कर रही थी , पर अरून को लगता अब उसकी हंसी में वह मुक्तता नहीं है, कदमों में गति नहीं है, उसमें एक उत्साह, एक आनंद की कमी है ।
एक शाम उसने परी से कहा, “ चलो , कहीं छुट्टी पर चलते हैं ।”
“ हाँ , महिषी की छुट्टियों में चलते हैं ।”
“ नहीं , सिर्फ़ तुम और मैं , हनीमून के बाद हम कभी अकेले छुट्टी पर गए ही नहीं । “
“ हाँ ।” और कुछ याद करके परी हंस दी ।
“ क्या हुआ?”
“ नहीं , तब मैंने कैसे तुम्हें अपने माँ बाप, सहेलियों की बातें करके बोर किया था । “ कह कर परी फिर से हंस दी ।
अरून को लगा परी की हंसी में भी जैसे गहरी उदासी है , कुछ संभलकर उसने कहा , “ नहीं , मैं बोर नहीं हुआ था , बल्कि तुम्हारे इश्क़ में पड़ गया था , और आजतक पड़ा हुआ हूँ । “
परी को इस तरह अरून का इतने दिनों बाद यूँ हल्का फुल्का फ़्लर्ट करना अच्छा लगा , और वह छुट्टियों पर जाने के लिए तैयार हो गई ।
जनवरी का महीना था, अरून परी को छुट्टियों के लिए मैकलियोडगंज ले गया । उनका होटल खड़ा डंडा रोड पर था, सड़क की इनक्लइन लगभग साठ डिग्री था । पहले दिन तो उनकी ऊपर आने जाने में ही साँस फूल गई , परन्तु दूसरे दिन से उनमें एक उत्साह आने लगा , वे लंबी लंबी सैर पर जाने लगे , और रात के भोजन के समय दुनिया भर के लोगों से होटल में बातचीत का लुत्फ़ उठाने लगे ।
एक रात ऐसी ही बातचीत के दौरान वह सैम से परिचित हुए, जो फ़्रैंच था, वह उस दिन टरूंड की चोटी पर होकर आया था और उसके सौंदर्य से अभिभूत था । वह देर रात तक अपनी यात्राओं के बारे में बताता रहा, और उनका मनोबल उसके हर क़िस्से के साथ बढ़ता रहा ।
अगले दिन वह इसी विषय पर सोचते रहे और रात होते न होते उन्होंने टरूंड की चोटी पर चढ़ने का फ़ैसला कर लिया ।टैक्सी लेकर वे चोटी के आधार तक पहुँचे , वहाँ कुछ पल गुलु मंदिर रूके , यहाँ से वे अकेले होने वाले थे , बिना किसी अनुभव, बिना किसी पथ प्रदर्शक के यह मंज़िल उन्हें अपने साहस के बल पर तय करनी थी ।
आरम्भ से ही उनके साथ एक कुत्ता चल पड़ा, जिसके गले में कीलों वाला पट्टा था । बाद में उन्हें पता चला, यह कुत्ता उनके साथ किसी खाद्य सामग्री के मिल जाने की आशा में चल रहा है । कीलेदार पट्टा उसके मालिक ने पहना दिया है , ताकि शिकारी जानवरों से उसकी सुरक्षा हो सके ।
मौसम अच्छा था, धूप और बादल , बारी बारी से आकाश को घेर रहे थे । सब तरफ़ बर्फ़ थी , और उनके जूते उनका साथ नहीं दे रहे थे , इसलिए चलते हुए सारा ध्यान रास्ते पर था , उन्हें चलते हुए दो घंटे हो गए थे , थकावट से उनका साहस टूट रहा था , कई बार गिरते गिरते संभले थे और आगे जाने का निश्चय वह छोड़ने ही वाले थे कि , उन्हें कुछ पर्यटकों का झुंड वापिस आता दिखाई दिया, जो चोटी छू लेने से बहुत प्रसन्न था, उन्होंने फिर से हिम्मत बांधी और दो घंटों की चढ़ाई के बाद चोटी पर पहुँच गए ।
वहाँ वे बिल्कुल अकेले थे , सिर्फ़ वह कुत्ता अभी भी उनके साथ था, प्रकृति के इस सौंदर्य में उनका अहम घुल गया , और उस एक पल ने दोनों को एक साथ, एक ब्रह्मांड से जोड़ दिया, उस पल परी का सारा अकेलापन जाता रहा , वह फिर से नई हो उठी , और अरून जीवन का वह संतुलन फिर से पा गया जो परी की आँखों के सूनेपन से उसके जीवन में घटता जा रहा था ।
वह चुपचाप और दो घंटे हाथों में हाथ लिए एक दूसरे को सँभालते हुए नीचे लौट आए । अंधेरा घिरने वाला था और वे जान गए थे कि आज उनकी चुप्पी में जो गहरा संवाद था, वह जीवन को उत्साह से भर देने के लिए पर्याप्त था , अब वह पूरी तरह से साथ साथ थे । परी ने मुंबई पहुँच कर अरून के साथ काम करना आरंभ कर दिया, और जीवन का यह नया मोड़ उसे नए अर्थों से भरने लगा ।
—— शशि महाजन
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