नया नौ दिन पुराना सौ दिन
चार दिन विदेश धूमने के बाद स्वदेश लौटने पर माँ के हाथ की करारी रोटी और दाल,
नए नए रंग होने के बावजूद दुलहन का लाल जोड़ा ,करवा चौथ पर युवा सुहागन का पारंपरिक श्रृंगार, ये सब आज भी हमें भाता है।
शहरों में समय सीमा है , भागम भाग और दूरियां हैं आधुनिकता है फिर भी अधिकतर लोग हर रोज़ धर का खाना ही खाते हैं।
नया युग,नित नए प्रयोग,परिवर्तन,निरंतर नई सोच,वैश्विक स्तर पर परिचर्चा,समाधान के कई प्रकार,इंटरनेट,वाट्सएप
इन सब को हम आज अपनी जीवन शैली का अभिन्न हिस्सा मान चुके हैं।
फिर भी क्या कुछ एसा है जो “पुराना सौ दिन” की कहावत को चरितार्थ करता