नया जब सफ़र है नई ज़िन्दगी है
नया जब सफ़र है नई ज़िन्दगी है
नये रास्तों की कहानी नयी है
बड़ी मुद्दतों बाद अब वो मिली है
मिली ज़िन्दगी जब लगी अनमनी है
सफ़र पर हैं दोनों अभी दूर मंज़िल
कहानी वफ़ा की अभी अनलिखी है
कई लफ़्ज़ शायद लबों पर रखे हैं
कोई बात अब तक रही अनकही है
कहीं एक बच्चा ज़रा मुस्कुराया
बता दो समझ लो यही ज़िन्दगी है
लगी जीत आसां तभी हार पाई
मुक़द्दर की कैसी ये बाज़ीगरी है
रची साज़िशें वक़्त ने इस तरह से
ख़ुशी जिसको समझा सज़ा की घड़ी है
कभी एक दीपक जलाकर तो देखो
उजालों के आगे कहाँ तीरगी है
न ‘आनन्द’ बदला न बदले हैं तेवर
ये किरदार उसका अभी तक वही है
– डॉ आनन्द किशोर