नया एक गीत अब गाने को है
. . . . . . . . गजल. . . . . . . . . .
बहर – 2122. 2122. 2122 212
आग सीने में दफन है, अब धुआँ छाने को है
आज नफ़रत आदमी की, फूटकर आने को है
आँसुओं से पूछ लो क्या, है कहानी दर्द की
पीर पर्वत सी पिघलकर, सामने आने को है
सांप्रदायिक ताकतों से, जल उठा है शहर फिर
लग रहा है कोई नेता, आज फिर आने को है
बहुत झेला है कहर, हमने सरे बाज़ार में
हर जिगर में क्रांतिकारी, सोच अब लाने को है
कह रहा हूँ आज फिर से, छोड़ दो चालाकियां
आदमी आकर सड़क पे , भूल मनवाने को है
हाय महंगाई का आलम, थाम पाए न कभी
तो सुनो सरकार ऐसी , डूब मर जाने को है
हर गली हर एक नगर में तेज होती ये सदा
आज’योगी”फिर नया एक गीत अब गाने को है
. . . . . . . . . . ✏️✏️योगेन्द्र योगी कानपुर
. . . . . . . . . . . . . ?-7607551907