नयन तेरे
नयन तेरे…..
लोचन,नयन,नेत्र,चक्षु हैं ,
अति मनमोहक और चितेरे।
हृदय के भाव मेरे पढ़ लेते,
ये दृग,विलोचन,अक्षि तेरे।
नील वर्ण गहरे समुद्र से
रहते इनमें कुछ भाव से ठहरे।
क्या खिलेंगे कभी कमल से
चक्षु, लोचन नयन यह तेरे।
न जाने क्यों दिखते इनमें
चिंताओं के बादल घनेरे।
निस पयोधि से उमड़ते हैं
न जाने क्यों ये नयन तेरे।
इक विरह सी दिखती इनमें
क्या छाए घनघोर अंधेरे।
पीर उर और नयनों में अश्रु
क्यों रखते हैं नयन तेरे।
सजल रहते नयन हरदम
क्या है टूटे कुछ ख्वाब तेरे।
आकुल, व्याकुल नित्य रहते
अपलक,विहृ्ल से नयन तेरे।
देख विद्युत सी है चमक लिए
निर्मल चंचल नयन तेरे।
ऊषा संध्या का हैं पर्याय
अनंत बसंत से नयन तेरे।
जुगनू बनकर नृत्य करते
मिटा देते सब अंधेरे।
हर पल कुछ तो बोलते हैं
नटखट बहुत है नयन तेरे।
सुन नीलम आलोकित करते
जीवन मेरा यह नयन तेरे।
मुझमें नव उल्लास भरते
ये तो हैं संज्ञान मेरे।
नीलम शर्मा