नयनों की भाषा
नयनों की भाषा
दिलों के सदा अरमान समझाए,
प्रेम- प्यार के भी पाठ पढ़ाए।
कोशिश तो बहुत की आँखों से,
उस भाषा को वो समझ न पाए।
लाख की कोशिश पढ़ाने-समझाने की,
पर रह गया बनकर सब एक तमाशा।
नयनों से बातें बहुत की प्रेम-प्यार की,
पर समझ सकी न वो नयनों की भाषा।
मन के सच्चे भाव बताए,
प्रेम के सदा घूँट पिलाए।
समझ गया मैं आँखों की जुबाँ,
जब भी उसने नयन मिलाए।
घोल-घोल कर चाहा पिलाना निगाहों से,
पग- पग पर मिली हमको हरदम निराशा।
नयनों से बातें बहुत की प्रेम-प्यार की,
पर समझ सकी न वो नयनों की भाषा।
कभी निगाहों में तनहाईयाँ देखी,
कभी मैंने उनमें रुसवाईयाँ देखी।
निगाहों में डूब जाने की चाह हुई,
तब उनमें समुद्र की गहराईयां देखी।
न थी चाह उसे; हुई ‘भारती’ को जिज्ञासा।
नयनों से बातें बहुत की प्रेम- प्यार की,
पर समझ सकी न वो नयनों की भाषा।
–सुशील भारती, नित्थर, कुल्लू (हि.प्र.)