नम्रता पर दोहे
नम्रता पर दोहे
सुशील शर्मा
सच्चा सद्गुण नम्रता ,है अमूल्य यह रत्न।
नम्र सदा विजयी रहे, व्यर्थ अहं के यत्न।
नम्र सदा हरि प्रिय रहें ,नम्र आत्म का रूप।
नम्र सदा निखरा रहे ,ज्यों सूरज की धूप।
अगर नम्रता साथ हो ,बनती विजय महान।
विनय नम्र व्यक्तित्व से ,बढ़ती नर की शान।
अहंकार को त्याग कर ,लिए नम्रता साथ।
ज्यों ज्यों नर ऊपर उठे ,त्यों त्यों झुकता माथ।
विपत और संघर्ष में ,अगर नम्र व्यवहार।
संकट चुटकी में टलें ,अपना हो संसार।
अहंकार से देव भी ,होते दैत्य समान।
नम्र भाव से दैत्य भी ,पाते देव विधान।
है विनाश के रूप में ,अहंकार का अंत।
नम्र सृजन का रूप है ,नम्र श्रेष्ठ गुण संत।
श्रेष्ठ प्रायश्चित धैर्य है ,संतोषी सुख योग।
सद्गुण श्रेष्ठ विनम्रता ,काम मुख्य है रोग।